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अनजान रहें

आज का विषय- अनजान राहें


तेरे साथ चलते रहे 
 अनजान राहों पर
यकीन यूँ किया 
कितनी दूर तक आ गए,
 साथ तेरे ये बता न सके।
हाल अब हो गया यूँ,
ये कदम अब वापस,
जा भी न सकेे।
ये राहें लगे कभी जानी,
तो कभी अनजानी सी।
कभी इनके राज 
समझ न सके।
तेरी बेरुखी ने सताया यूँ
ज़ख्मों को अपने दिखा न सके।
तेरी खामोशियों ने,
यूं रूलाया मुझे।
 किसी को ये आंसू,
दिखा भी ना सके।
चाहत तेरी दिल में,
थी इस कदर।
पर बयां उसे,
कभी कर न सके।
 बेरुखी की तेरे,
आदत यूं लगी।
मोहब्बतें तेरी,
समझ न सके।
अनजान राहों पर साथ 
तेरे चलकर सनम।
मंजिल तक अपनी पंहुँच न सके।

स्नेहलता पाण्डेय' स्नेह '

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5 Comments

Ravi Goyal

30-Jun-2021 08:26 AM

Bahut umda 👌👌

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Aliya khan

29-Jun-2021 11:03 PM

बहुत खूब

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Nitish bhardwaj

29-Jun-2021 07:47 PM

बहुत खूब

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